शुरू होता है- गुरुवार, 11 अगस्त (बहुत सवेरे)
समाप्त होता है- गुरुवार, 11 अगस्त (शाम)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, रक्षा बंधन का त्योहार भाइयों और बहनों के बीच बंधन का जश्न मनाता है। इस त्योहार से जुड़ी कई पौराणिक रोचक कहानियां हैं।
ऐसी ही एक पौराणिक कथा है देवी लक्ष्मी और राजा बलि की!
बलि प्रह्लाद के पोते, और एक शक्तिशाली दानव राजा थे। बलि भी भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे। वह भगवान विष्णु के आशीर्वाद से अजेय थे और स्वर्ग के सभी 'देवों' को युद्ध मे पराजित कर चुके थे।
देवताओं के राजा इंद्र को अपना सिंघासन वापिस चहिए था!
इस कारणवश, इंद्र, स्वर्ग के भगवान, और अन्य 'देवता'; बलि को हराने के लिए भगवान विष्णु की मदद माँगने गये, तो भगवान विष्णु वमन अवतार में राजा बलि के पास गए। बलि एक बहुत ही उदार राजा था, जो हमेशा जरूरतमंदों की मदद करता था।
भगवान विष्णु का पाँचवाँ अवतार: वामन अर्थात बौना
विष्णु अवतार वामन ने बलि से पूछा कि क्या वह उनको तीन पग भूमि दान दे सकता है। महादानी बलि ने सोचा कि एक बौना अपने छोटे पैरों के साथ कितना स्थान नाप पाएगा। यह सोच कर बलि , भगवान वामन को भूमि दान के लिए सहमत हो गया। बलि के सहमत होते ही, वामन ने अपना आकर बढ़ाना शुरू कर दिया और वे विशालकाय स्वरूप में आ गये, जब तक कि उन्होनें पूरी पृथ्वी को एक पग में ढंक नहीं दिया और दूसरे पग मे आकाश। अपने दो कदमो मे धरती ओर आकाश को ढकने के बाद, भगवान विष्णु ने बाली से पूछा कि वह अपना तीसरा कदम कहाँ रखे। यह सुनकर उदार राजा भगवान विष्णु के सामने झुक गया और उनसे अपने सिर पर पैर रखने का अनुरोध किया।
राजा की भक्ति और उदारता से खुश होकर, भगवान विष्णु ने उन्हें दिव्य संरक्षण और अमरता का वादा किया। और बलि के साथ पाताल लोक रहने चले गये।
बैकुंठ में अकेली माँ लक्ष्मी!
वही दूसरी तरफ यह जानकर की भगवान विष्णु बलि से प्रसन्न होकर उनकी रक्षा के लिए पाताल लोक चले गये हैं, व्याकुल हो गईं! माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के लिए बेचैन हो गई और इस कारण वह एक ब्राह्मण महिला के रूप में पृथ्वी पर उतरी और बलि से रहने के लिए एक जगह की माँग क़ी। बलि ने माता लक्ष्मी को शरण दी और उनका स्वागत किया, और उन्हे अपनी बहन के रूप में अपना लिया। इसी कारण श्रावण के महीने में पूर्णिमा के दिन, देवी लक्ष्मी ने बलि की कलाई पर रंगीन सूती का एक धागा बांधा। जिसे देख कर बाली ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं, यह सुनकर देवी लक्ष्मी ने अपने असली रूप में आकर कहा कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्ही को लेने आई हूं। यह सुनकर बलि ने रक्षासूत्र का धर्म निभाते हुए मां लक्ष्मी को भगवान विष्णु सौंप दिए।
देवी लक्ष्मी ने मुंहबोले भाई बलि को राखी बांधकर विष्णु भगवान को मुक्त कराया था। इसी दिन से राखी भाई बहन का त्योहार बन गया और रक्षाबंधन का मंत्र भी इसी से बना।
जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बाँधती हूँ। हे रक्षे (राखी), तुम अडिग रहना। अपने रक्षा के संकल्प से कभी भी विचलित मत होना।
रक्षा बन्धन अनुष्ठान का समय
धागा समारोह का समय - सुबह 06:15 बजे से शाम 5:31 बजे तक
अपराहन का समय रक्षा बंधन मुहूर्त - 01:42 अपराह्न। 04:18 अपराह्न तक
रक्षा बंधन का त्योहार दिन के समय शुरू होता है जहां लोग नए कपड़े पहनते हैं और पूजा के लिए इकट्ठा होते हैं। परंपरागत रूप से, बहन सुख और समृद्धि की प्रार्थना करते हुए अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती है।
इसी दौरान भाई अपनी बहन को किसी भी परिस्थिति में उसकी रक्षा करने का वादा करते हुए, आभूषण या धन जैसे उपहार देता है और बदले मे बहन अपने भाई का मूँह मिठाई या ओर कोई मीठे व्यंजन से मीठा कराती है। इन सभी अनुष्ठानों को करने के बाद, पूरा परिवार उत्सव में आनंद लेने के लिए एकत्र होता है।और भोजन, मिठाई, उपहार, संगीत और नृत्य के साथ इस त्योहार को मनाते है।